Wednesday, September 19, 2012
Tuesday, September 18, 2012
Sunday, September 16, 2012
अव्यक्त मुरलि 16/09/12
16-09-12 प्रात:मुरली ओम् शान्ति '' अव्यक्त-बापदादा '' रिवाइज: 10.09.75 मधुबन
नोलेजफुल और पावरफुल आत्मा ही सक्सेसफुल
सदा हर स्थिति में मास्टर नोलेजफुल, पावरफुल और सक्सेसफुलस्वयं को अनुभव करते हो? क्योंकि नोलेजफुलऔर पावरफुल आत्मा की रिजल्ट है सक्सेसफुल| वर्तमान समय इन दोनों सब्जेक्ट्स यादअर्थात पावरफुल और ज्ञान अर्थात नोलेज- इन दोनों सब्जेक्ट्स का ऑब्जेक्ट (उदेश्य) है सक्सेसफुल | इसी कोही प्रत्यक्ष फल कहा जाता है | इस समय का प्रत्यक्ष फल आपके भविष्य फल को प्रख्यात करेगा | ऐसे नहीं कि भविष्य फल के आधार पर अब के प्रत्यक्ष फल को अनुभव करने से वंचित रह जाओ | ऐसे कभी भी संकल्प नहीं करना कि वर्तमान में कुछ दिखाई नै देता है न अनुभव नहीं होता है व प्राप्ति नहीं होती है | यह पढ़ाई तो है हीभविष्य की | भविष्य मेरा बहुत उज्ज्वल है| अभी मैं गुप्त हौं, अन्त में प्रख्यात होजाऊंगा लेकिन भविष्य की झलक, भविष्य की प्रालब्ध व अन्तिम समय पर प्रसिद्ध होनेवाली आत्मा की चमक अब से सर्व को अनुभव होनी चाहिए इसलिए पहले प्रत्यक्ष फल औरसाथ में भविष्य फल | प्रत्यक्ष फल नहीं तोभविष्य फल भी नहीं | स्वयं को स्वयं प्रत्यक्ष नहीं करे लेकिन उनका सम्पर्क, स्नेह और सहयोग ऐसी आत्मा को स्वत: ही प्रसिद्ध कर देते है |
यह ईश्वरीय ला (नियम) है कि स्वयं को किसी भी प्रकार से सिद्धकरने वाला कभी भी प्रसिद्ध नहीं हो सकता इसलिए यह संकल्पकि मैं स्वयं को जनता हौं कि मैं ठीक हूँ, दूसरे नहीं जानते व दूसरे नहीं पहचानते, आखिर पहचान ही लेंगे व आगे चलकर देखना क्या होता है? यह भी ज्ञान स्वरूप, याद स्वरूप आत्मा के लिए स्वयं को धोखा देने वाले अलबेलेपन की मीठी निद्रा है | ऐसे अल्पकाल का आराम देनेवाली व अल्प काल के लिए अपने दिल को दिलासा देने वाली माया की निद्रा के अनेक प्रकार है | जिस भी बातों में अपनी प्रालब्ध को व प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति को खोते हो तो अवश्य अनेक प्रकारकी निद्रा में सोते हो इसलिए कहावत है जिन सोया तिन खोया | तो खोना ही सोना है | ऐसे कभी भी समय पर सफलता पा नहीं सकते अर्थात सक्सेसफुल नहीं बन सकते |
सारे कल्प के अंदर सिर्फ इस संगम युग को ड्रामा प्लेन अनुसार वरदान है- कौन सा? संगमयुग को कौनसा वरदान है? प्रत्यक्ष फल का वरदान सिर्फ संगमयुग को है | अभी-अभी देना, अभी-अभीमिलना| पहले देखते हो फिर करते हो, पक्के सौदागर हो | संगमयुग की विशेषता है कि इस युग में ही बाप भी प्रत्यक्ष होते है, ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण भी प्रत्यक्ष होते है| आप सबके 84 जन्मों की कहानी भी प्रत्यक्ष होती है | श्रेष्ठ नोलेज भी प्रत्यक्ष होती है | इस कारण ही प्रत्यक्षफल मिलता है | प्रत्यक्ष फल का अनुभव कर रहे हो? प्रत्यक्ष फल प्राप्तहोते समय भविष्य फल को सोचता रहे ऐसी आत्मा को कौन-सी आत्मा कहेगे? ऐसी आत्मा को मास्टर नोलेजफुल कहेगें या यह भी एक अज्ञान है ? किसी भी प्रकार अज्ञान नींद में सोयेहुए तो नहीं हो?
सदा जागती-ज्योति बनेतो ? जागने की निशनी है जागना अर्थात पाना| तो सर्व प्राप्ति करने वाले सदा जागती-ज्योति हो? सदा जागती-ज्योति बनने केलिए मुख्य कौनसी धारणा है, जानते हो? जो साकार बाप में विशेष थी-वह बताओ? साकार बाप की विशेष धारणा क्या थी? जागती-ज्योति बनने केलिए मुख्य धारणा चाहिए अथक बनने की | जब थकावट होती है तो नींद आती है | साकार बाप में अथक-पं की विशेषता सदा अनुभव की| ऐसे फोलो फादर करने वाले सदा जागती-ज्योति बनते है | यह भी चेक करो कि चलते-चलते कोई भी प्रकार की थकावट अज्ञान की नींद में सुला तो नहीं देती? इसीलिए कल्प पहले की यादगार में भी निंद्राजीत बनने का विशेष गुण गाया हुआ है | अनेक प्रकार की निंद्रा से निंद्रा जीत बनो | यह भी लिस्ट निकालना कि किस-किस प्रकार की निद्रा निद्राजीत बनने नहीं देती | जैसे निद्रा में जाने से पहले निद्रा की निशानियाँ दिखाई देती है उस नींद की निशानी है उबासी और अज्ञान नींदकी निशानी है उदासी | इसी प्रकार निशानियाँभी निकालना | इसकी दो मुख्य बाते है – एक आलस्य, दूसरा अलबेलापन | पहले यह निशानियाँ आती है फिरनींद का नशा चढ़ जाता है | इसलिए इस पर अच्छी तरह से चेकिंग करना |चेकिंग के साथ साथ चेंज करना | सिर्फचेकिंग नहीं करना-चेकिंग और चेंज दोनों ही करना | समझा?
अच्छा ! ऐसे स्वयं के परिवर्तन द्वारा विश्व को परिवर्तन करने वाले, बाप समान सदा अथक, हर संकल्प, बोल और कर्म का प्रत्यक्ष फल अनुभव करने वाले, सर्व प्राप्ति स्वरूप विशेष आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते |
Wednesday, September 12, 2012
Sunday, September 9, 2012
Thursday, September 6, 2012
तीन लोक कौन कौन से हे
तीन लोक कौन से है और शिव का धाम कौन सा है ?
मनुष्य आत्माएं मुक्ति अथवा पूर्ण शान्ति की शुभ इच्छा तो करती है परन्तु उन्हें यह मालूम नहीं है कि मुक्तिधाम अथवा शान्तिधाम है कहाँ? इसी प्रकार, परमप्रिय परमात्मा शिव से मनुष्यात्माएं मिलना तोचाहती है और उसी याद भी करती है परन्तु उन्हें मालूम नहीं है कि वह पवित्र धाम कहाँ है जहाँसे हम सभी मनुष्यात्माएं सृष्टि रूपी रंगमंच पर आई है, उसप्यारे देश को सभी भूल गई है और और वापिस भी नहीं जा सकती !!
१. साकार मनुष्य लोक - सामने चित्र में दिखाया गया है कि एक है यह साकार ‘मनुष्य लोक’ जिसमे इस समय हम है | इसमें सभी आत्माएं हड्डी- मांसादि का स्थूल शरीर लेकर कर्म करती है और उसका फल सुख- दुःख के रूप में भोगती है तथा जन्म-मरण के चक्कर में भी आती है | इसलोक में संकल्प, ध्वनि और कर्म तीनों है | इसे ही ‘पाँच तत्व की सृष्टि’अथवा ‘कर्म क्षेत्र’ भी कहते है | यह सृष्टि आकाश तत्व के अंश-मात्र में है | इसे सामने त्रिलोक के चित्र में उल्टे वृक्ष के रूप में दिखायागया है क्योंकि इसके बीज रूप परमात्मा शिव, जो कि जन्म-मरण से न्यारे है, ऊपर रहते है |
२. सूक्ष्म देवताओं का लोक – इस मनुष्य-लोक के सूर्य तथा तारागण के पारआकाश तत्व के भी पार एक सूक्ष्म लोक है जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है | उस प्रकाश के अंश-मात्र में ब्रह्मा, विष्णु तथामहदेव शंकर की अलग-अलग पुरियां है | इन्स देवताओं के शरीर हड्डी- मांसादि के नहीं बल्कि प्रकाश के है | इन्हें दिव्य-चक्षु द्वारा ही देखा जा सकता है | यहाँ दुःख अथवा अशांति नहीं होती | यहाँ संकल्प तो होते है और क्रियाएँ भी होती है और बातचीत भी होती है परन्तु आवाज नहीं होती |
३. ब्रह्मलोक और परलोक- इन पुरियों के भी पार एकऔर लिक है जिसे ‘ब्रह्मलोक’, ‘परलोक’, ‘निर्वाण धाम’, ‘मुक्तिधाम’, ‘शांतिधाम’, ‘शिवलोक’ इत्यादि नामों से याद किया जाता है | इसमें सुनहरे-लाल रंग का प्रकाश फैला हुआ है जिसे ही ‘ब्रह्म तत्व’, ‘छठा तत्व’, अथवा ‘महत्त्व’ कहा जा सकता है| इसके अंशमात्र ही में ज्योतिर्बिंदु आत्माएं मुक्ति की अवस्था में रहती है | यहाँ हरेक धर्म की आत्माओं के संस्थान (Section) है |
उन सभी के ऊपर, सदा मुक्त, चैतन्य ज्योति बिन्दु रूप परमात्मा ‘सदाशिव’ का निवास स्थान है | इस लोक में मनुष्यात्माएं कल्प के अन्त में, सृष्टि का महाविनाश होने के बाद अपने-अपने कर्मो का फल भोगकर तथा पवित्र होकर ही जाती है | यहाँ मनुष्यात्माएं देह-बन्धन, कर्म-बन्धन तथा जन्म-मरण से रहित होती है | यहाँ न संकल्प है, न वचन और न कर्म | इस लोक में परमपिता परमात्मा शिव के सिवाय अन्य कोई ‘गुरु’ इत्यादि नहीं ले जा सकता | इस लोकमें जाना ही अमरनाथ, रामेश्वरम अथवा विश्वेश्वर नाथ की सच्ची यात्रा करना है, क्योंकि अमरनाथ परमात्मा शिव यही रहते है |
मनुष्य का 84 लाख योनिओ धारण नही करती
मनुष्यात्मा 84 लाख योनियाँ धारण नहीं करती
परमप्रिय परमपिता परमात्मा शिव ने वर्तमान समय जैसे हमें ईश्वरीय ज्ञान के अन्य अनेक मधुर रहस्य समझाये है, वैसे ही यह भी एक नई बात समझाई है कि वास्तव में मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेती | यह हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात है | परन्तु फिर भी कई लोग ऐसे लोग है जो यह कहते कि मनुष्य आत्माएं पशु-पक्षी इत्यादि 84  लाख योनियों में जन्म-पुनर्जन्म लेती है|
वे कहते है कि- “जैसे किसी देश की सरकार अपराधी को दण्ड देने के लिए उसकी स्वतंत्रता को छीन लेती है और उसे एक कोठरी में बन्द कर देती है और उसे सुख-सुविधा सेकुछ काल के लिए वंचित करदेती है, वैसे ही यदि मनुष्य कोई बुरे कर्म करता है तो उसे उसके दण्ड के रूप में पशु-पक्षी इत्यादि भोग-योनियों में दुःख तथा परतंत्रता भोगनी पड़ती है”|
परन्तु अब परमप्रिय परमपिता परमात्मा शिव ने समझया है कि मनुष्यात्माये अपने बुरे कर्मो का दण्ड मनुष्य-योनि में ही भोगती है | परमात्मा कहते है कि मनुष्य बुरे गुण-कर्म-स्वभाव के कारण पशु से भी अधिक बुरा तो बन ही जाता है और पशु-पक्षी से अधिक दुखी भी होता है, परन्तु वह पशु-पक्षी इत्यादि योनियों में जन्म नहीं लेता | यह तो हम देखते यासुनते भी है कि मनुष्य गूंगे, अंधे, बहरे, लंगड़े, कोढ़ी चिर-रोगी तथा कंगाल होते है, यह भीहम देखते है कि कई पशु भी मनुष्यों से अधिक स्वतंत्र तथा सुखी होते है, उन्हें डबलरोटी और मक्खन खिलाया जाता है, सोफे (Sofa) पर सुलाया जाता है, मोटर-कार में यात्रा करी जाती है और बहुत ही प्यार तथा प्रेमसे पाला जाता है परन्तु ऐसे कितने ही मनुष्य संसार में है जो भूखे औरअद्-र्धनग्न जीवन व्यतीत करते है और जब वेपैसा या दो पैसे मांगने के लिए मनुष्यों के आगे हाथ फैलाते है तो अन्य मनुष्य उन्हें अपमानित करते है | कितने ही मनुष्य है जो सर्दी में ठिठुर कर, अथवा रोगियों की हालत में सड़क की पटरियों पर कुते से भी बुरी मौत मर जाते है और कितने ही मनुष्य तो अत्यंत वेदना और दुःख केवश अपने ही हाथो अपने आपको मार डालते है | अत: जब हम स्पष्ट देखते है कि मनुष्य-योनि भी भोगी-योनि है और कि मनुष्य-योनि में मनुष्य-योनि में मनुष्यपशुओं से अधिक दुखी हो सकता है तो यह क्यों माना जाए कि मनुष्यात्मा को पशु-पक्षी इत्यादि योनियों में जन्म लेना पड़ता है ?
जैसा बीज वैसा वृक्ष :
इसके अतिरिक्त, य्ह्र एकमनुष्यात्मा में अपने जन्म-जन्मान्तर का पार्ट अनादि काल से अव्यक्त रूप में भरा हुआहै और, इसलये मनुष्यात्माएं अनादि काल से परस्पर भिन्न-भिन्न गुण-कर्म-स्वभाव प्रभाव और प्रारब्ध वाली है | मनुष्यात्माओं के गुण, कर्म, स्वभाव तथा पार्ट (Part) अन्य योनियों की आत्माओं के गुण, कर्म, स्वभाव से अनादिकाल से भिन्न है | अत: जैसे आम की गुठली से मिर्च पैदा नहीं हो सकती बल्कि “जैसा बीज वैसा ही वृक्षहोता है”, ठीक वैसे ही मनुष्यात्माओं की तो श्रेणी ही अलग है | मनुष्यात्माएं पशु-पक्षी आदि 84 लाख योनियों में जन्म नहीं लेती | बल्कि, मनुष्यात्माएं सारे कल्प में मनुष्य-योनि में ही अधिक-से अधिक 84 जन्म, पुनर्जन्म लेकर अपने-अपने कर्मो के अनुरूप सुख-दुःख भोगती है |
यदि मनुष्यात्मा पशु योनि में पुनर्जन्म लेती तो मनुष्य गणना बढ़ती ना जाती :
आप स्वयं ही सोचिये कि यदि बुरी कर्मो के कारण मनुष्यात्मा का पुनर्जन्म पशु-योनि मेंहोता, तब तो हर वर्ष मनुष्य-गणना बढ़ती ना जाती, बल्कि घटती जाती क्योंकि आज सभी के कर्म, विकारों के कारण विकर्म बन रहे है | परन्तु आप देखते है कि फिर भी मनुष्य-गणना बढ़ती ही जाती है, क्योंकि मनुष्यपशु-पक्षी या कीट-पतंग आदि योनियों में पुनर्जन्म नहीं ले रहे है |
मनुष्य 84 जन्मो की अदभुद कहानी
मनुष्य के 84 जन्मों की अद्-भुत कहानी
मनुष्यात्मा सारे कल्प में अधिक से अधिक कुल 84जन्म लेती है, वह 84 लाख योनियों में पुनर्जन्म नहीं लेती | मनुष्यात्माओं के 84 जन्मों के चक्र को ही यहाँ 84 सीढ़ियों के रूप में चित्रित किया गया है | चूँकि प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा सरस्वती मनुष्य-समाज के आदि-पिता और आदि-माता है, इसलिए उनके 84 जन्मों का संक्षिप्त उल्लेख करने से अन्य मनुष्यात्माओं का भी उनके अन्तर्गत आ जायेगा| हम यह तो बता आये है कि ब्रह्मा और सरस्वती संगम युग में परमपिता शिव के ज्ञान और योग द्वारा सतयुग के आरम्भ में श्री नारायण और श्रीलक्ष्मी पद पाते है |
सतयुग और त्रेतायुग में 21 जन्म पूज्य देवपद :
अब चित्र में दिखलाया गया है कि सतयुग के 1250 वर्षों में श्रीलक्ष्मी, श्रीनारायण 100 प्रतिशत सुख-शान्ति-सम्पन्न 8 जन्म लेते है| इसलिए भारत में 8 की संख्या शुभ मानी गई है और कई लोग केवल 8 मनको की माला सिमरते है तथा अष्ट देवताओं का पूजन भीकरते है | पूज्य स्तिथि वाले इन 8 नारायणी जन्मों को यहाँ 8 सीढ़ियों के रूप में चित्रित किया गया है | फिर त्रेतायुग के 1250 वर्षों में वे 14 कला सम्पूर्ण सीता और रामचन्द्र के वंश में पूज्य राजा-रानी अथवा उच्च प्रजा के रूप में कुल 12 या 13 जन्म लेते है | इस प्रकार सतयुग और त्रेता के कुल 2500 वर्षों में वे सम्पूर्ण पवित्रता, सुख, शान्ति और स्वास्थ्य सम्पन्न 21 दैवी जन्म लेते है | इसलिए ही प्रसिद्ध है किज्ञान द्वारा मनुष्य के 21 जन्म अथवा 21 पीढ़ियां सुधर जाती है अथवा मनुष्य 21 पीढियोंके लिए तर जाता है |
द्वापर और कलियुग में कुल 63 जन्म जीवन-बद्ध :
फिर सुख की प्रारब्ध समाप्त होने के बाद वे द्वापरयुग के आरम्भ में पुजारी स्तिथि को प्राप्त होते है | सबसे पहले तो निराकार परमपिता परमात्मा शिव की हीरे की प्रतिमा बनाकर अनन्य भावना से उसकी पूजा करते है | यहाँ चित्र में उन्हें एक पुजारी राजा के रूप में शिव-पूजा करते दिखाया गया है | धीरे-धीरे वे सूक्ष्म देवताओं, अर्थात विष्णु तथा शंकर की पूजा शुरू करते है और बाद में अज्ञानता तथा आत्म-विस्मृति के कारण वे अपने ही पहले वाले श्रीनारायण तथा श्रीलक्ष्मी रूप की भी पूजा शुरू कर देते है | इसलिए कहावत प्रसिद्ध है कि “जो स्वयं कभी पूज्य थे, बाद में वे अपने-आप ही के पुजारी बनगए |” श्री लक्ष्मी और श्री नारायण की आत्माओं ने द्वापर युग के 1250 वर्षों में ऐसी पुजारी स्थिति में भिन्न-भिन्ननाम-रूप से, वैश्य-वंशी भक्त-शिरोमणि राजा,रानीअथवा सुखी प्रजा के रूप में कुल 21 जन्म लिए |
इसके बाद कलियुग का आरम्भ हुआ | अब तो सूक्ष्म लोक तथा साकार लोक के देवी-देवताओं की पूजा इत्यादि के अतिरिक्त तत्व पूजा भी शुरू हो गई | इस प्रकार, भक्ति भी व्यभिचारी हो गई | यह अवस्था सृष्टि की तमोप्रधान अथवा शुद्र अवस्था थी | इस काल में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार उग्र रूप-धारण करते गए | कलियुग के अन्त में उन्होंने तथा उनके वंश के दूसरे लोगों ने कुल 42 जन्म लिए |
उपर्युक्त से स्पष्ट है कि कुल 5000 वर्षों मेंउनकी आत्मा पूज्य और पुजारी अवस्था में कुल 84 जन्म लेती है | अब वह पुरानी, पतित दुनिया में83 जन्म ले चुकी है | अब उनके अन्तिम, अर्थात 84 वे जन्म की वानप्रस्थ अवस्था में, परमपिता परमात्मा शिव ने उनका नाम “प्रजापिता ब्रह्मा” तथा उनकी मुख-वंशी कन्या का नाम “जगदम्बा सरस्वती” रखा है | इस प्रकार देवता-वंश की अन्य आत्माएं भी 5000 वर्ष में अधिकाधिक 84 जन्म लेती है | इसलिए भारत में जन्म-मरण के चक्र को “चौरासी का चक्कर” भी कहते है और कई देवियों के मंदिरों में 84 घंटे भी लगे होते है तथा उन्हें “84 घंटे वाली देवी” नाम से लोग याद करते है |
मनुष्य के 84 जन्मों की अद्-भुत कहानी
मनुष्यात्मा सारे कल्प में अधिक से अधिक कुल 84जन्म लेती है, वह 84 लाख योनियों में पुनर्जन्म नहीं लेती | मनुष्यात्माओं के 84 जन्मों के चक्र को ही यहाँ 84 सीढ़ियों के रूप में चित्रित किया गया है | चूँकि प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा सरस्वती मनुष्य-समाज के आदि-पिता और आदि-माता है, इसलिए उनके 84 जन्मों का संक्षिप्त उल्लेख करने से अन्य मनुष्यात्माओं का भी उनके अन्तर्गत आ जायेगा| हम यह तो बता आये है कि ब्रह्मा और सरस्वती संगम युग में परमपिता शिव के ज्ञान और योग द्वारा सतयुग के आरम्भ में श्री नारायण और श्रीलक्ष्मी पद पाते है |
सतयुग और त्रेतायुग में 21 जन्म पूज्य देवपद :
अब चित्र में दिखलाया गया है कि सतयुग के 1250 वर्षों में श्रीलक्ष्मी, श्रीनारायण 100 प्रतिशत सुख-शान्ति-सम्पन्न 8 जन्म लेते है| इसलिए भारत में 8 की संख्या शुभ मानी गई है और कई लोग केवल 8 मनको की माला सिमरते है तथा अष्ट देवताओं का पूजन भीकरते है | पूज्य स्तिथि वाले इन 8 नारायणी जन्मों को यहाँ 8 सीढ़ियों के रूप में चित्रित किया गया है | फिर त्रेतायुग के 1250 वर्षों में वे 14 कला सम्पूर्ण सीता और रामचन्द्र के वंश में पूज्य राजा-रानी अथवा उच्च प्रजा के रूप में कुल 12 या 13 जन्म लेते है | इस प्रकार सतयुग और त्रेता के कुल 2500 वर्षों में वे सम्पूर्ण पवित्रता, सुख, शान्ति और स्वास्थ्य सम्पन्न 21 दैवी जन्म लेते है | इसलिए ही प्रसिद्ध है किज्ञान द्वारा मनुष्य के 21 जन्म अथवा 21 पीढ़ियां सुधर जाती है अथवा मनुष्य 21 पीढियोंके लिए तर जाता है |
द्वापर और कलियुग में कुल 63 जन्म जीवन-बद्ध :
फिर सुख की प्रारब्ध समाप्त होने के बाद वे द्वापरयुग के आरम्भ में पुजारी स्तिथि को प्राप्त होते है | सबसे पहले तो निराकार परमपिता परमात्मा शिव की हीरे की प्रतिमा बनाकर अनन्य भावना से उसकी पूजा करते है | यहाँ चित्र में उन्हें एक पुजारी राजा के रूप में शिव-पूजा करते दिखाया गया है | धीरे-धीरे वे सूक्ष्म देवताओं, अर्थात विष्णु तथा शंकर की पूजा शुरू करते है और बाद में अज्ञानता तथा आत्म-विस्मृति के कारण वे अपने ही पहले वाले श्रीनारायण तथा श्रीलक्ष्मी रूप की भी पूजा शुरू कर देते है | इसलिए कहावत प्रसिद्ध है कि “जो स्वयं कभी पूज्य थे, बाद में वे अपने-आप ही के पुजारी बनगए |” श्री लक्ष्मी और श्री नारायण की आत्माओं ने द्वापर युग के 1250 वर्षों में ऐसी पुजारी स्थिति में भिन्न-भिन्ननाम-रूप से, वैश्य-वंशी भक्त-शिरोमणि राजा,रानीअथवा सुखी प्रजा के रूप में कुल 21 जन्म लिए |
इसके बाद कलियुग का आरम्भ हुआ | अब तो सूक्ष्म लोक तथा साकार लोक के देवी-देवताओं की पूजा इत्यादि के अतिरिक्त तत्व पूजा भी शुरू हो गई | इस प्रकार, भक्ति भी व्यभिचारी हो गई | यह अवस्था सृष्टि की तमोप्रधान अथवा शुद्र अवस्था थी | इस काल में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार उग्र रूप-धारण करते गए | कलियुग के अन्त में उन्होंने तथा उनके वंश के दूसरे लोगों ने कुल
आत्मा क्या है और मन क्या है
आत्मा क्या है और मन क्या है ?
अपने सारे दिन की बातचीतमें मनुष्य प्रतिदिन न जाने कितनी बार ‘ मैं ’ शब्द का प्रयोग करता है| परन्तु यह एक आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन ‘ मैं ’ और ‘ मेरा ’ शब्द का अनेकानेक बार प्रयोग करने पर भी मनुष्य यथार्थ रूप में यह नहीं जानता कि ‘ मैं ’ कहने वाले सत्ता का स्वरूप क्या है, अर्थात ‘ मैं’ शब्द जिस वस्तु का सूचक है, वह क्या है ? आज मनुष्य ने साइंस द्वारा बड़ी-बड़ी शक्तिशाली चीजें तो बना डाली है, उसने संसार की अनेक पहेलियों का उत्तर भी जान लिया है और वह अन्य अनेक जटिल समस्याओं का हल ढूंढ निकलने में खूब लगा हुआ है, परन्तु ‘ मैं’ कहने वाला कौन है, इसके बारे में वह सत्यता को नहीं जानता अर्थात वह स्वयं को नहीं पहचानता |आज किसी मनुष्य से पूछा जाये कि- “आप कौन है ?” तो वह झट अपने शरीर का नाम बता देगा अथवा जो धंधा वह करता है वह उसकानाम बता देगा |
वास्तव में ‘मैं’ शब्द शरीर से भिन्न चेतन सत्ता ‘आत्मा’ का सूचक हैजैसा कि चित्र में दिखाया गया है | मनुष्य (जीवात्मा) आत्मा और शरीर को मिला कर बनता है| जैसे शरीर पाँच तत्वों(जल, वायु, अग्नि, आकाश, और पृथ्वी) से बना हुआ होता है वैसे ही आत्मा मन, बुद्धि और संस्कारमयहोती है | आत्मा में ही विचार करने और निर्णय करने की शक्ति होती है तथा वह जैसा कर्म करती है उसी के अनुसार उसके संस्कार बनते है |
आत्मा एक चेतन एवं अविनाशी ज्योति-बिन्दु है जो कि मानव देह में भृकुटी में निवास करती है | जैसे रात्रि को आकाश में जगमगाता हुआ तारा एक बिन्दु-सा दिखाई देता है, वैसे ही दिव्य-दृष्टि द्वारा आत्मा भी एक तारे की तरहही दिखाई देती है | इसीलिए एक प्रसिद्ध पद में कहा गया है- “भृकुटीमें चमकता है एक अजब तारा, गरीबां नूं साहिबालगदा ए प्यारा |” आत्मा का वास भृकुटी में होने के कारण ही मनुष्य गहराईसे सोचते समय यही हाथ लगता है | जब वह यश कहता है कि मेरे तो भाग्य खोटे है, तब भी वह यही हाथ लगता है | आत्मा का यहाँ वास होने के कारण ही भक्त-लोगों में यहाँ ही बिन्दी अथवा तिलक लगाने की प्रथा है | यहाँ आत्मा का सम्बन्ध मस्तिष्क से जुड़ा है औरमस्तिष्क का सम्बन्ध सरे शरीर में फैले ज्ञान-तन्तुओं से है | आत्मा ही में पहले संकल्प उठता है और फिर मस्तिष्क तथा तन्तुओं द्वारा व्यक्त होता है |आत्मा ही शान्ति अथवा दुःख का अनुभव करती तथा निर्णय करती है और उसी में संस्कार रहते है | अत: मन और बुद्धि आत्म से अलग नहीं है | परन्तु आज आत्मा स्वयं को भूलकरदेह- स्त्री, पुरुष, बूढ़ा जवान इत्यादि मान बैठी है | यह देह-अभिमानही दुःख का कारण है |
उपरोक्त रहस्य को मोटर के ड्राईवर के उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया गया है | शरीर मोटर के समान है तथा आत्मा इसका ड्राईवर है, अर्थात जैसेड्राईवर मोटर का नियंत्रण करता है, उसी प्रकार आत्मा शरीर का नियंत्रण करती है | आत्मा के बिना शरीर निष्प्राण है, जैसे ड्राईवर के बिना मोटर | अत: परमपिता परमात्मा कहते है कि अपने आपको पहचानने से ही मनुष्य इसशरीर रूपी मोटर  को चला सकता है और अपने लक्ष्य (गन्तव्य स्थान) पर पहुंच सकता है | अन्यथा जैसे कि ड्राईवर कार चलाने में निपुण न होने के कारण दुर्घटना (Accident) का शिकार बन जाता है और कार उसके यात्रियों को भी चोट लगती है, इसी प्रकार जिस मनुष्य को अपनी पहचान नहीं है वह स्वयं तो दुखी और अशान्त होता ही है, साथ में अपने सम्पर्क में आने वाले मित्र-सम्बन्धियों को भी दुखी व अशान्त बना देता है | अत: सच्चे सुख व सच्ची शान्ति के लिए स्वयं को जानना अति आवश्यक है |
राजयोग प्रदर्शनी
मनुष्य अपने जीवन में कईपहेलियाँ हल करते है और उसके फलस्वरूप इनाम पते है | परन्तु इस छोटी-सी पहेली का हल कोई नहीं जानता कि – “मैं कौन हूँ?” यों तो हर-एक मनुष्य सारा दिन “मैं...मैं ...” कहता ही रहता है, परन्तु यदि उससे पूछा जाय कि “मैं” कहने वाला कौन है? तो वह कहेगा कि--- “मैं कृष्णचन्द हूँ... या ‘मैं लालचन्द हूँ” | परन्तु सोचा जाय तो वास्तव में यह तो शरीर का नाम है, शरीर तो ‘मेरा’ है, ‘मैं’ तो शरीर से अलग हूँ | बस, इस छोटी-सी पहेली का प्रेक्टिकल हल न जानने के कारण, अर्थात स्वयं को न जानने के कारण, आज सभी मनुष्य देह-अभिमानीहै और सभी काम, क्रोधादि विकारों के वश है तथा दुखी है |
अब परमपिता परमात्मा कहते है कि—“आज मनुष्यमें घमण्ड तो इतना है किवह समझता है कि—“मैं सेठ हूँ, स्वामी हूँ, अफसर हूँ....,” परन्तु उस में अज्ञान इतना है कि वह स्वयं को भी नहीं जानता | “मैं कौन हूँ, यहसृष्टि रूपी खेल आदि से अन्त तक कैसे बना हुआ है,मैं इस में कहाँ से आया, कब आया, कैसे आया, कैसे सुख- शान्ति का राज्य गंवाया तथा परमप्रिय परमपिता परमात्मा (इस सृष्टि के रचयिता) कौन है?” इन रहस्यों को कोई भी नहीं जानता | अब जीवन कि इस पहेली (Puzzle of life) को फिर से जानकर मनुष्य देही-अभिमानी बनसकता है और फिर उसके फलस्वरूप नर को श्री नारायण और नारी को श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति होती है और मनुष्य को मुक्ति तथा जीवनमुक्ति मिल जाती है | वह सम्पूर्ण पवित्रता, सुख एवं शान्ति को पा लेता है |
जब कोई मनुष्य दुखी और अशान्त होता है तो वह प्रभु ही से पुकार कर सकता है- “हे दुःख हर्ता, सुख-कर्ता, शान्ति-दाता प्रभु, मुझे शान्ति दो |” विकारों के वशीभूत हुआ-हुआ मुशी पवित्रता के लिए भी परमात्मा की ही आरती करते हुए कहता है- “विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा !” अथवा “हेप्रभु जी, हम सब को शुद्धताई दीजिए, दूर करके हर बुराई को भलाई दीजिए |” परन्तु परमपिता परमात्मा विकारों तथा बुराइयों को दूर करने के लिए जो ईश्वरीय ज्ञान देते है तथा जो सहज राजयोग सिखाते है, प्राय: मनुष्य उससे अपरिचित है और वे इनको व्यवहारिक रूप में धारण भी नहीं करते | परमपिता परमात्मा तो हमारा पथ-प्रदर्शन करते है और हमे सहायता भी देते है परन्तु पुरुषार्थ तो हमे स्वत: ही करना होगा, तभी तो हम जीवन में सच्चा सुख तथा सच्ची शान्ति प्राप्त करेंगे और श्रेष्ठाचारी बनेगे|
आगे परमपिता परमात्मा द्वारा उद्घाटित ज्ञान एवं सहज राजयोग अ पथ प्रशस्त किया गया है इसेचित्र में भी अंकित क्यागया है तथा साथ-साथ हर चित्र की लिखित व्याख्या भी दी गयी है ताकि ये रहस्य बुद्धिमय हो जायें | इन्हें पढ़नेसे आपको बहुत-से नये ज्ञान-रत्न मिलेंगे | अबप्रैक्टिकल रीति से राजयोग का अभ्यास सीखने तथा जीवन दिव्य बनाने केलिए आप इस प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व-विधालय के किसी भी सेवा-केन्द्र पर पधार कर नि:शुल्क ही लाभउठावें |
Wednesday, September 5, 2012
मुरलि सार
06-09-12 Hindi
मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - रूहानी बाप ने यह रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है, इस यज्ञ के रक्षक तुम ब्राह्मण हो, तुम गायन लायक बनते हो, लेकिन अपनी पूजा नहीं करा सकते हो''
प्रश्न: तुम बच्चों में जब ज्ञान की पराकाष्ठा हो जायेगी, तो उस समय की स्थिति क्या होगी?
उत्तर: उस समय तुम्हारी स्थिति अचल, अडोल होगी। किसी भी प्रकार के माया के तूफान हिला नहीं सकेंगे। तुम्हारी कर्मातीत अवस्था हो जायेगी। अभी तक ज्ञान की पूरी पराकाष्ठा न होने के कारणमाया के तूफान, स्वप्न आदि आते हैं। यह युद्ध का मैदान है, नई-नई आशायें प्रगट हो जायेंगी। परन्तुतुम्हें इनसे डरना नहीं है। बाप से श्रीमत ले आगे बढ़ते रहना है।
गीत:- तुम्हें पाके हमने जहाँ ...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मुरली रोज़ जरूर पढ़नी है। माया के तूफानों से डरना नहीं है। किसीभी प्रकार के धोखे से बचने के लिए श्रीमत लेते रहना है।
2) पढ़ाई और योग दोनों इकट्ठा हैं इसलिए पढ़ाने वाले बाप को याद करना है। निश्चय बुद्धि बनना और बनाना है। बाप का ही परिचय सबको देना है।
वरदान: कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा सर्व की ब्लैसिंग प्राप्तकरने वाले सहज सफलतामूर्त भव
कर्म में योग और योग में कर्म - ऐसा कर्मयोगी अर्थात् श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल बनाने वाला सर्व की दुआओं का अधिकारी बन जाताहै। कर्म और योग के बैलेन्स से हर कर्म में बाप द्वारा ब्लैसिंग तो मिलती ही है लेकिन जिसके भी संबंध-सम्पर्क में आते हैं उनसे भी दुआयें मिलती हैं, सब उसे अच्छा मानते हैं, यह अच्छा मानना ही दुआयें हैं। तो जहाँ दुआयें हैं वहाँ सहयोग है और यह दुआयें व सहयोग ही सफलतामूर्त बना देता है।
स्लोगन: सदा खुश रहना और खुशियों का खजाना बांटते रहना यही सच्ची सेवा है।
Tuesday, September 4, 2012
Monday, September 3, 2012
MURLI 04/09/12
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मुरली सार:- मीठे बच्चे-पहला निश्चय करो कि मैं आत्मा हूँ, प्रवृत्ति में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा और पौत्रा समझकर चलो, यही मेहनत है
प्रश्न: तुम सब पुरूषार्थी बच्चेकिस एक गुह्य राज़ को अच्छी तरह जानते हो?
उत्तर: हम जानते हैं कि अभी तक 16कला सम्पूर्ण कोई भी बना नहीं है,सब पुरूषार्थ कर रहे हैं। मैं सम्पूर्ण बन गया हूँ-यह कहने की ताकत किसी में भी नहीं हो सकती, क्योंकि अगर सम्पूर्ण बन जायें तो यह शरीर ही छूट जाए। शरीर छूटेतो सूक्ष्मवतन में बैठना पड़े। मूलवतन में तो कोई जा नहीं सकता, क्योंकि जब तक ब्राइडग्रूम न जाये, तब तक ब्राइड्स कैसे जा सकेंगी। यह भी गुह्य राज़ है।
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) साक्षात्कार आदि की आश न रख निश्चयबुद्धि बन पुरूषार्थ करनाहै। पहले-पहले निश्चय करना है किमैं अति सूक्ष्म आत्मा हूँ।
2) बीमारी आदि में बाप की याद मेंरहना है। यह भी कर्मभोग है। याद से ही आत्मा पावन बनेगी। पावन बनकर पावन दुनिया में चलना है।
वरदान: मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले कर्मयोगी भव
दुनिया वाले समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ हैं लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ हैं। ऐसा कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त कर लेगा। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। लेकिन कर्मके साथ योग है माना मन और बुद्धि की एकाग्रता है तो सफलता बंधी हुई है। कर्मयोगी आत्मा को बाप की मदद भी स्वत: मिलती है।
स्लोगन: बाप के स्नेह का रिटर्न देने के लिए अन्दर से अनासक्त व मनमनाभव रहो।
CHART
>बि के भाई बहनो के लिए  एक तिव्रपुरुषार्थ का सुनहरा अवसर है तो इस चार्ट को प्रिन्ट करा कर इस मे दिए गय है योग का समय और जो जो लिखा है उसमे भर ते जाईए और अपना पुरुषार्थ किजिए । तिव्रपुरुषार्थी भवः 
Sunday, September 2, 2012
Saturday, September 1, 2012
 
दिल रूपी तख्त-नशीन ही सतयुगी विश्व के राज्य का अधिकारी 
02-09-12 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 05-09-75 मधुबन 
फरिश्ता स्वरूप की स्थिति 
वरदान: अपने आक्यूपेशन की स्मृति द्वारा मन को कन्ट्रोल करने वाले राजयोगी भव 
अमृतवेले तथा सारे दिन में बीच-बीच में अपने आक्यूपेशन को स्मृति में लाओ कि मैं राजयोगी हूँ। राजयोगी की सीटपर सेट होकर रहो। राजयोगी माना राजा, उसमें कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पावर होती है। वह एक सेकण्ड में मनको कन्ट्रोल कर सकते हैं। वह कभी अपने संकल्प, बोल और कर्मको व्यर्थ नहीं गंवा सकते। अगर चाहते हुए भी व्यर्थ चला जाता है तो उसे नॉलेजफुल वा राजा नहीं कहेंगे। 
स्लोगन: स्व पर राज्य करने वाले ही सच्चे स्वराज्य अधिकारी हैं।
ज्वालामुखी योग के लिए पोईन्ट-मैं आत्मा लाइटहाउस माईटहाउस पावरहाउस सर्चलाइट डिवाइन इन्साईट वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा बाप के साथ कम्बाइन रहने वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा देहिअभिमानी आत्माअभिमानी रूहानीअभिमानी जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा परमात्माज्ञानी परमात्मअभिमानी परमात्मभग्यवान जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा मूलवतन की रहेवासी अशरीर अव्यक्त सम्पुर्ण कर्मातीत जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा पवित्रता सुख शांति आनन्द प्रेम ज्ञान गुण शक्ति सम्पत्ति वाली सम्पूर्ण जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा सदा लाइट केकार्ब रहने वाली सर्वशक्ति सम्पन्न जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा मनबुद्धिसंस्कार दिलदिमागशरीर सहित एकटिक द्रढ़ एकाग्र बीजरूप स्थिति वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा सफल सम्पन्न सम्पूर्ण भरपूर तुप्त संतुष्ट विजय का विजय स्वरूप वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा सर्वगुण सर्वशक्ति समान सम्पन्न सम्पूर्ण जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा सर्वशस्त्र, सर्वकल्याणी सर्वउपकारी सर्वअलंकारी सर्वस्नेही सर्वसहयोगी सर्वअधिकारी सर्वसत्कारी सर्वस्वमानी जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा निराकारी निर्विकारी निरहंकारी निर्वाणस्थिति वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा निरन्त याद वाली एकरस जलतीज्वालाज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा सम्पूर्ण श्रीमत वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूपज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा शुभ श्रेष्ठ सम्पूर्ण परिवर्तन वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा साररूप वाली न्यारी प्यारी निराली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा बाप की दिल में , आखों में , मस्तक में समायी हुई जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा बाप से पूरीकनेक्टेड ,  पुरे पुरी बाप से जुटी हुई , निरंतर बाप के साथ सर्व सबंध में रहें वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा बाप की आज्ञाकारी वफादार फरमानबरदार इमानदार जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा बापक की हर्षितमुख अंतरमुख गम्भीर रमणीक जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा नोलेजफूल पावरफुल सस्केसफूल बिल्सफूल में सम्पन सम्पूर्ण जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा अलोकिक अधिकारी सर्व बेलेन्सवाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा बिंदु बन सर्व बातो में बिंदु लगाने वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा फूलस्टॉप की धारणा जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा कंट्रोलिंगपावर रूलिंग पावन वाली क्लीन क्लियर अटूट अडोल अचल अथक जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा ज्ञानस्वरूप यादस्वरूप धारणास्वरूप वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा साक्षी सारथि साथी की स्थिति वाली साक्षतमूर्त साक्षत्कारमूर्त दर्शनीयमूर्त वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा संगठित स्वरूप वाली मन बुद्धि से द्रढ़ एकाग्र बिंदुरूप वालीआत्मिक स्वरूप अशरीर अव्यक्त कर्मातीत साक्षीद्रष्टा स्थिति वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा पावरफूल ब्रेक वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा सर्वशक्तिमान , सर्वशक्तिवान में सम्पन्न सम्पूर्ण जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा योगबल यादबल योगअग्नि यादअग्नि वाली निरंतरप्रज्वलित जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा शक्तिमूर्तसंहारनीमूर्त अलंकारीमूर्त कल्याणीमूर्त साक्षतमूर्त साक्षत्कारमूर्त दर्शनीयमूर्त रूहानीमूर्त अव्यक्तमूर्त बापमूर्त शिवमूर्त सफलमूर्त सम्पन्नमूर्त सम्पुर्णमूर्त विजयीमूर्त वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मैं आत्मा मास्टर पतित पावन दुःख हर्ता सुख हर्ता मुक्ति जीवनमुक्ति गति सद्गति वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
मास्टर ज्ञानसूर्य मास्टर रचयिता मास्टरमहाकल मास्टर सर्व शक्तिवान शिवशक्ति कम्बाइन जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
शिवशक्ति जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
शिवमइ शक्ति जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
शक्ति अवतार जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
सम्पूर्ण स्वराज्य अधिकारी जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
रूहानी झलक फलक फकुर वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त
पावरफूल फूलकोर्ष वाली जलतीज्वाला ज्वालामुखी ज्वालास्वरूप ज्वालाअग्नि ज्वालामूर्त -------
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